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अर्बन मिरर संवाददाता
लखनऊ । राहुल गांधी की अध्यक्षता में पहली बार हुई कांग्रेस कार्य समिति के निर्णय से कांग्रेस के लिए चुनौतियां बढ़ गयी है। गैर भाजपा दलों के राज्यों के नेता राहुल गांधी को महागठबंधन का प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनने का समर्थन करते है या नही। यह बहुत ही महत्वपूर्ण होगा। जिस तरह से गैर भाजपा वाद के नाम पर मोदी हटाओं के नारे के साथ विपक्ष एक जुट होने का दावा कर रहा है उसमें कांग्रेस कार्य समिति के निर्णय को कितना समर्थन मिलता है। इससे गठबंधन की ताकत का अंदाजा लग जायेगा। यह सत्य है कि बिना कांग्रेस के विपक्ष एकता का कोई आैचित्य नही है क्योंकि देश की किसी भी राजनीतिक दल में इतनी ताकत नही है कि वह सरकार बनाने की संख्या जुटा पाये। सपा, बसपा, टीडीपी, एनसीपी, टीएमसी एवं वामपंथी पार्टिया अपने-अपने राज्यों तक सीमित है आैर अगर दूसरे राज्यों में चंद सीटे मिल भी जाती है तो भी बिना कांग्रेस के सरकार बनाना संभव नही है। कांग्रेस इसे अच्छी तरह जानती है इसीलिए राहुल गांधी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाने में देर नही किया। कांग्रेस की यह रणनीति इस बात पर निर्भर करती है कि वह देश की सबसे बड़ी पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में बने आैर गैर भाजपा दलों को एक जुट करने में सफल रहे। अगर ऐसा नही होता है तो राहुल गांधी के अगुवाई में देश में गैर भाजपा वाद पर लड़ा जा रहा 2019 का लोगसभा चुनाव में मोदी को पराजित करना आसान नहीं होगा। वरिष्ठ नेता पी चिदबरम का यह सुझाव महत्वपूर्ण है। जिसमें उन्होने कहा है कि कांग्रेस को 12 मजबूत राज्यों में ऐसी रणनीति अपनानी चाहिए कि वह 150 सीटे जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बने आैर कमजोर राज्यों में दूसरे दलों से गठबंधन करके 150 सीटे जीते जिससे कुल सीटों की संख्या 300 हो जायेगी आैर राहुल के नेतृत्व में सरकार बन सकती है।
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